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Editorial: हाथरस मामले में निर्दोषों की मौत का जिम्मेदार आएगा सामने?

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Will the person responsible for the death of innocents in Hathras case come forward?: यूपी के हाथरस में एक सत्संग समारोह में भगदड़ के दौरान 121 लोगों की जान चली गई लेकिन अब इस मामले की जांच के दौरान जिस प्रकार के तथ्य सामने आ रहे हैं, वे इंगित कर रहे हैं कि इतिहास में दर्ज तमाम ऐसे मामलों की तरह यह केस भी अंधकारपूर्ण है और इसमें कुछ समय बाद संभव है, आरोपियों की रिहाई भी हो जाए। दरअसल, सरकार की ओर से गठित न्यायिक आयोग की जांच में सामने आ रहा है कि यह हादसा धक्का-मुक्की और एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ में हुआ। अब बेशक किसी ने इस सत्संग का आयोजन किया था, लेकिन जिन घटनाओं की वजह से यह हादसा हुआ, क्या उसके लिए आयोजकों को जिम्मेदार ठहराया जाएगा। वास्तव में यह सब कानूनी पेचीदगियों की तरफ इशारा कर रहा है। प्रश्न यह है कि आखिर इतनी मौतों के लिए वास्तव मेंं किसे जिम्मेदार ठहराया जाएगा। अभी तक के हालात तो ऐसे हैं कि सिर्फ दो सेवादार  ही गिरफ्तार किए गए हैं। जबकि इन आश्रमों का संचालन कर रहा बाबा अभी भी पुलिस जांच से बाहर है।

दरअसल, इस प्रकरण में यह साबित हो रहा है कि कार्यक्रम स्थल पर प्रबंधन उचित नहीं था। हालांकि अब पुरी में भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा के दौरान भी भगदड़ की घटना सामने आई है, जिसमें 400 लोग घायल हो गए और एक की मौत हो गई। क्या यह माना जाए कि यहां भी प्रबंधन सही नहीं था। इसके बाद राज्य सरकार ने जहां जांच के आदेश दिए हैं। पुरी में रथयात्रा ऐसा अवसर होती है, जिसमें लाखों की तादाद में लोग शामिल होते हैं और अपनी आस्था का निर्वाह करते हैं। क्या इन्हें रोका जा सकता है।

हाथरस मामले में बहस छिड़ी है कि संबंधित बाबा जोकि खुद को भगवान का स्वरूप बता रहा था के पैरों की धूल लेने के लिए धक्का-मुक्की हुई। उसे सेवादारों ने जब मैनेज करने की कोशिश की तो भगदड़ मच गई। निश्चित रूप से किसी का भी मंतव्य किसी हादसे का आधार तैयार करना नहीं था। वास्तव में इस वारदात ने यह साबित कर दिया है कि समाज के कमजोर और लाचार लोग अपने दुख-परेशानी का निवारण पाने के लिए इसी प्रकार सर्वशक्ति संपन्न बाबाओं के चरणों में इसी प्रकार लौटते रहेंगे और अपना जीवन खत्म करते रहेंगे।

दरअसल, ऐसे आयोजनों में आने वाले लोगों ने कभी नहीं चाहा होगा कि उनके साथ कुछ ऐसा होगा। हालांकि इसकी आशंका भरपूर रहती है कि ऐसी जगह पर कभी भी कुछ भी हो सकता है। यही वजह है कि ऐसे ही आयोजन करवाने वाले एक अन्य बाबा ने अब ऑनलाइन सत्संग करवाने का ही ऐलान किया है। वास्तव में ऐसे आयोजन शांतिपूर्वक निपट जाएं, यही काफी होता है, क्योंकि यहां जैसे ही कोई घटना घटती है तो उसके बाद शासन-प्रशासन की तमाम कोताही सामने आ जाती हैं। हाथरस में जो घटा, उसके संबंध में बताया जा रहा है कि इस आयोजन की अनुमति नहीं ली गई थी और  प्रशासन के अधिकारियों को इसकी कानों कान खबर तक नहीं थी।

बताया गया है कि भोले बाबा के नाम से विख्यात नारायण साकार हरि  उर्फ सूरजपाल हर महीने के पहले मंगलवार को इस प्रकार का सत्संग समारोह आयोजित करते हैं। अब इस प्रकार के सत्संग के आयोजन करने में कुछ भी गलत नजर नहीं आता अगर वहां पर कानून सम्मत तरीके से सब कुछ होता है। भगवान का नाम लेना कोई अपराध नहीं हो सकता। हालांकि मामला तब बिगड़ता है, जब ऐसे आयोजनों में अपार भीड़ पहुंचती है और फिर यह भी सुनिश्चित है कि भोज के नाम पर उस भीड़ से चढ़ावे की भी प्राप्ति होती है। क्या यह नहीं कहा जा सकता कि आजकल ऐसे आयोजन धन कमाने की फैक्ट्रियों की भांति हो गए हैं।

इस समय हरियाणा, यूपी, पंजाब, एमपी और देश के दूसरे राज्यों में तमाम ऐसे बाबा हैं, जोकि धर्म के नाम लोगों को ठगने का काम कर रहे हैं। जो ठगे जा रहे हैं, उनमें ऐसे लोगों की संख्या ज्यादा होती है, जोकि धन का अभाव झेल रहे हंै। इस मामले में राजनीति भी हो रही है, जब नेता विपक्ष राहुल गांधी ने हाथरस का दौरा किया। वास्तव में इस प्रकार की घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए जहां प्रभावी कानून की जरूरत है, वहीं धर्म की आड़ में ऐसे आयोजन करने वालों को भी इसकी जरूरत समझनी चाहिए कि वे जन भावनाओं और उनकी जान से न खेलें। हादसे होना दुर्भाग्यपूर्ण हैं लेकिन ऐसे हादसों को रोका जा सकता है, अगर प्रबंधन कुशल हो। 

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